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वाराणसी। काशी की जीवनरेखा कही जाने वाली वरुणा नदी इन दिनों प्रदूषण के भयावह संकट से जूझ रही है। पुराने पुल से लेकर नक्खी घाट तक नदी के जल में हजारों मृत मछलियाँ तैरती दिखाई दीं, जिससे क्षेत्र के लोगों में हड़कंप मच गया और प्रशासनिक अमला सक्रिय हो गया।
ऑक्सीजन लेवल 0.4 तक पहुंचा — मछलियों के लिए मौत का कारण
प्रदूषण नियंत्रण विभाग की प्राथमिक जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। नदी से लिए गए जल नमूनों में विघटित ऑक्सीजन (DO) का स्तर मात्र 0.4 से 0.5 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया है।
विशेषज्ञों के अनुसार, मछलियों के जीवित रहने के लिए DO का स्तर कम से कम 2 PPM होना जरूरी है। इतनी कम ऑक्सीजन मात्रा ने जलजीवों का जीवन छीन लिया।
सीवर के सीधे प्रवाह से बढ़ा जहर, इंटरसेप्टर नाले बने विनाश का कारण
जांच दल ने पाया कि वरुणा नदी के दोनों तटों पर बने इंटरसेप्टर नाले अशोधित सीवर जल को सीधे नदी में छोड़ रहे हैं, जिससे जल गुणवत्ता लगातार बिगड़ रही है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि बीते कुछ दिनों से नदी के पानी में तेज बदबू आ रही थी और सतह पर झाग की मोटी परतें दिखाई दे रही थीं।
बीड फिश प्रजाति का भारी नुकसान
मत्स्यपालन विकास अभिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने बताया कि मृत मछलियों में चेलवा, पुठिया, गिरही, और बाटा जैसी “बीड फिश प्रजातियाँ” शामिल हैं।
उन्होंने कहा, “बारिश और बादलों के चलते सूर्यप्रकाश की कमी से जल में घुलनशील ऑक्सीजन घट गई, जबकि कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से मछलियाँ दम तोड़ने लगीं।”
पूजा सामग्री और कचरा बने प्रदूषण के बड़े कारण
निरीक्षण दल ने पाया कि स्थानीय लोग नदी में माला-फूल, पूजा सामग्री और प्लास्टिक कचरा फेंक रहे हैं। इससे बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट दोनों प्रकार का प्रदूषण तेजी से बढ़ा है।
पर्यावरण विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि 20–25 टन बुझा चूना (लाइम पाउडर) नदी में छिड़कने से कुछ हद तक पानी की गुणवत्ता सुधारी जा सकती है।
नगर निगम ने चलाई स्कीमर मशीनें
अपर नगर आयुक्त ने बताया कि नगर निगम द्वारा नदी की सतह पर तैरते अपशिष्ट को हटाने के लिए स्कीमर मशीनें लगाई गई हैं। साथ ही एंटी-लार्वा दवाओं का छिड़काव भी नियमित रूप से कराया जा रहा है ताकि दुर्गंध और संक्रमण से बचाव हो सके।
गंगा की सहायक नदियों को कौन बचाएगा?
वरुणा नदी में मछलियों की इस सामूहिक मौत ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि —
क्या गंगा की सहायक नदियों को स्वच्छ रखने के सरकारी प्रयास केवल कागजों तक ही सीमित हैं?
स्थानीय सामाजिक संगठनों ने इस पर सख्त कार्रवाई और प्रदूषण नियंत्रण की ठोस नीति लागू करने की मांग की है।










